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झूलेलाल चालीसा
सनातन धर्म में हर वर्ग और जाति के लोग है एवं उनके अपने अपने आराध्य है। उन्हीं में से सिंध समाज से जुड़ें है श्री झूलेलाल जी। धार्मिक मान्यताओँ के अनुसार जो भी व्यक्ति महाराज झूलेलाल जी चालीसा पढ़ता और सुनता है, उसे जल से संबंधित कोई भी रोग नहीं होता है। इसी के साथ अगर कोई व्यक्ति रोज श्री झूलेलाल जी की चालीसा पढ़ता है तो उसके जीवन में किसी तरह का संकट, बाधा, दुःख, कष्ट, विपत्ति आदि दूर हो जाती हैं।
झूलेलाल चालीसा एक ऐसा स्तोत्र है जो भगवान झूलेलाल की महिमा का गुणगान करता है , जो सिंधी समुदाय के आराध्य देव माने जाते हैं। झूलेलाल को जल देवता और वरुण देवता का अवतार माना जाता है। जो भी भक्त झूलेलाल चालीसा का पाठ करते हैं उन्हें साहस, आत्मविश्वास, प्राप्त होता है और समस्याओं से मुक्ति भी मिलती है। इस चालीसा के प्रभाव से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है
जय जय जल देवता, जय ज्योति स्वरूप । अमर उडेरो लाल जय, झुलेलाल अनूप ॥
रतनलाल रतनाणी नंदन । जयति देवकी सुत जग वंदन ॥
दरियाशाह वरुण अवतारी । जय जय लाल साईं सुखकारी ॥
जय जय होय धर्म की भीरा । जिन्दा पीर हरे जन पीरा ॥
संवत दस सौ सात मंझरा । चैत्र शुक्ल द्वितिया भगऊ वारा ॥
ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा । प्रभु अवतरे हरे जन कलेशा ॥
सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी । मिरखशाह नऊप अति अभिमानी ॥
कपटी कुटिल क्रूर कूविचारी । यवन मलिन मन अत्याचारी ॥
धर्मान्तरण करे सब केरा । दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ॥
पिटवाया हाकिम ढिंढोरा । हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा ॥
सिन्धी प्रजा बहुत घबराई । इष्ट देव को टेर लगाई ॥
वरुण देव पूजे बहुंभाती । बिन जल अन्न गए दिन राती ॥
सिन्धी तीर सब दिन चालीसा । घर घर ध्यान लगाये ईशा ॥
गरज उठा नद सिन्धु सहसा । चारो और उठा नव हरषा ॥
वरुणदेव ने सुनी पुकारा । प्रकटे वरुण मीन असवारा ॥
दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरुपा । कर पुष्तक नवरूप अनूपा ॥
हर्षित हुए सकल नर नारी । वरुणदेव की महिमा न्यारी ॥
जय जय कार उठी चाहुँओरा । गई रात आने को भौंरा ॥
मिरखशाह नऊप अत्याचारी । नष्ट करूँगा शक्ति सारी ॥
दूर अधर्म, हरण भू भारा । शीघ्र नसरपुर में अवतारा ॥
रतनराय रातनाणी आँगन । खेलूँगा, आऊँगा शिशु बन ॥
रतनराय घर ख़ुशी आई । झुलेलाल अवतारे सब देय बधाई ॥
घर घर मंगल गीत सुहाए । झुलेलाल हरन दुःख आए ॥
मिरखशाह तक चर्चा आई । भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई ॥
मंत्री ने जब बाल निहारा । धीरज गया हृदय का सारा ॥
देखि मंत्री साईं की लीला । अधिक विचित्र विमोहन शीला ॥
बालक धीखा युवा सेनानी । देखा मंत्री बुद्धि चाकरानी ॥
योद्धा रूप दिखे भगवाना । मंत्री हुआ विगत अभिमाना ॥
झुलेलाल दिया आदेशा । जा तव नऊपति कहो संदेशा ॥
मिरखशाह नऊप तजे गुमाना । हिन्दू मुस्लिम एक समाना ॥
बंद करो नित्य अत्याचारा । त्यागो धर्मान्तरण विचारा ॥
लेकिन मिरखशाह अभिमानी । वरुणदेव की बात न मानी ॥
एक दिवस हो अश्व सवारा । झुलेलाल गए दरबारा ॥
मिरखशाह नऊप ने आज्ञा दी । झुलेलाल बनाओ बन्दी ॥
किया स्वरुप वरुण का धारण । चारो और हुआ जल प्लावन ॥
दरबारी डूबे उतराये । नऊप के होश ठिकाने आये ॥
नऊप तब पड़ा चरण में आई । जय जय धन्य जय साईं ॥
वापिस लिया नऊपति आदेशा । दूर दूर सब जन क्लेशा ॥
संवत दस सौ बीस मंझारी । भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी ॥
भक्तो की हर आधी व्याधि । जल में ली जलदेव समाधि ॥
जो जन धरे आज भी ध्याना । उनका वरुण करे कल्याणा ॥
चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय । पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय ॥
॥ ॐ श्री वरुणाय नमः ॥
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