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श्री भागवतगीता की आरती
जय भगवद् गीते,
जय जय भगवद् गीते।
हरि-हिय-कमल-विहारिणी,
सुन्दर सुपुनीते॥
जय जय भगवद् गीते।
कर्म-सुमर्म-प्रकाशिनि,
कामासक्ति हरा।
तत्त्वज्ञान-विकाशिनि,
विद्या ब्रह्म परा॥
जय जय भगवद् गीते।
निश्चल-भक्ति-विधायिनी,
निर्मल मल्हारी।
शरण-सहस्य-प्रदायिनि,
सब विधि सुख कारी॥
जय जय भगवद् गीते।
राग-द्वेष-विदारिणी,
कारिणि मोद सदा।
भव-भय-हारिणि तारिणी,
परमानंद प्रदा॥
जय जय भगवद् गीते।
आसुर-भाव-विनाशिनि,
नाशिनी तम रजनी।
दैवी सद् गुणदायिनि,
हरि-रसिका सजनी॥
जय जय भगवद् गीते।
समता, त्याग सिखावनि,
हरि-मुख की बानी।
सकल शास्त्र की स्वामिनी,
श्रुतियों की रानी॥
जय जय भगवद् गीते।
दया-सुधा बरसावनि,
मातु! कृपा कीजै।
हरिपद-प्रेम दान कर,
अपनो कर लीजै॥
जय जय भगवद् गीते।
जय भगवद् गीते,
जय जय भगवद् गीते।
हरि-हिय-कमल-विहारिणी,
सुन्दर सुपुनीते॥
जय जय भगवद् गीते।
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