ओम जय धनवंतरि देवा, जय धनवंतरि देवा। जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।। जय धनवंतरि देवा।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए। देवासुर के संकट आकर दूर किए।। जय धनवंतरि देवा।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया। सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।। जय धनवंतरि देवा।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी। आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।। जय धनवंतरि देवा।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे। असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।। जय धनवंतरि देवा ।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा। वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का चेरा।। जय धनवंतरि देवा।।
धनवंतरिजी की आरती जो कोई जन गावे। रोग-शोक न आवे, सुख-समृद्धि पावे।। जय धनवंतरि देवा।।