1. चंद्र देव की आरती
ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा । दुःख हरता सुख करता, जय आनन्दकारी ।
रजत सिंहासन राजत, ज्योति तेरी न्यारी । दीन दयाल दयानिधि, भव बन्धन हारी ।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे । सकल मनोरथ दायक, निर्गुण सुखराशि ।
योगीजन हृदय में, तेरा ध्यान धरें । ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, सन्त करें सेवा ।
वेद पुराण बखानत, भय पातक हारी । प्रेमभाव से पूजें, सब जग के नारी ।
शरणागत प्रतिपालक, भक्तन हितकारी । धन सम्पत्ति और वैभव, सहजे सो पावे ।
विश्व चराचर पालक, ईश्वर अविनाशी । सब जग के नर नारी, पूजा पाठ करें ।
ॐ जय सोम देवा, स्वामी जय सोम देवा । दुःख हरता सुख करता, जय आनन्दकारी ।
2. चंद्रदेव की आरती
ॐ जय श्रीचन्द्र यती, स्वामी जय श्रीचन्द्र यती | अजर अमर अविनाशी योगी योगपती |
सन्तन पथ प्रदर्शक भगतन सुखदाता, अगम निगम प्रचारक कलिमहि भवत्राता |
कर्ण कुण्डल कर तुम्बा गलसेली साजे, कंबलिया के साहिब चहुँ दीश के राजे |
अचल अडोल समाधि पद्मासन सोहे बालयती बनवासी देखत जग मोहे |
कटि कौपीन तन भस्मी जटा मुकुट धारी, धर्म हत जग प्रगटे शंकर त्रिपुरारी |
बाल छबी अति सुन्दर निशदिन मुस्काते, भृकुटी विशाल सुलोचन निजानन्दराते |
उदासीन आचार्य करूणा कर देवा, प्रेम भगती वर दीजे और सन्तन सेवा |
मायातीत गुसाई तपसी निष्कामी, पुरुशोत्तम परमात्म तुम हमारे स्वामी |
ऋषि मुनि ब्रह्मा ज्ञानी गुण गावत तेरे, तुम शरणगत रक्षक तुम ठाकुर मेरे | जो जन तुमको ध्यावे पावे परमगती,
श्रद्धानन्द को दीजे भगती बिमल मती | अजर अमर अविनाशी योगी योगपती |
ॐ जय श्रीचन्द्र यती, स्वामी जय श्रीचन्द्र यती |
जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा | आरती ओंवाळू पदिं ठेवुनि माथा || धृ.||
उदयीं तुझ्या हृदयीं शीतळता उपजे | हेलावुनि क्षीराब्धी आनंदे गर्जे | विकसित कुमुदिनी देखुनि मनही बहु रंजे | चकोर नृत्य करिती अदभुत सुख माजे || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा
विशेष महिमा तुझा न कळे कोणासी | त्रिभुवनिं द्वादशीराशी व्यापुनि राहसी | नवही ग्रहांमध्यें उत्तम आहेसी | तुझे बळ वांछीती सकळहि कार्यासी || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा
शंकरगणनाथादिक भूषण मिरवीती | भाळी मौळी तुजला संतोषे धरिती | संकटनामचतुर्थीस रूपजन जे करिती | संतत्ती संपत्ति अंती भवसागर तरती || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा
केवळ अमृतरूप अनुपम्य वळ्सी | स्थावर जंगम यांचें जीवन आहेसी | प्रकाश अवलोकितां मन हे उल्हासी | प्रसन्न होउनि आतां लावी निजकांसी || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा
सिंधूतनया बिंदू इंदू श्रीयेचा | सुकर्तिदायक नायक उड्डगण यांचा | कुरंगवाहन चंद्र अनुचित हे वाचा | गोसावीसुत विनवी वर दे मज साचा || जय देव जय देव श्रीशाशिनाथा